वांछित मन्त्र चुनें

अषा॑ळ्हो अग्ने वृष॒भो दि॑दीहि॒ पुरो॒ विश्वाः॒ सौभ॑गा संजिगी॒वान्। य॒ज्ञस्य॑ ने॒ता प्र॑थ॒मस्य॑ पा॒योर्जात॑वेदो बृह॒तः सु॑प्रणीते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aṣāḻho agne vṛṣabho didīhi puro viśvāḥ saubhagā saṁjigīvān | yajñasya netā prathamasya pāyor jātavedo bṛhataḥ supraṇīte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अषा॑ळ्हः। अ॒ग्ने॒। वृ॒ष॒भः। दि॒दी॒हि॒। पुरः॑। विश्वाः॑। सौभ॑गा। स॒म्ऽजि॒गी॒वान्। य॒ज्ञस्य॑। ने॒ता। प्र॒थ॒मस्य॑। पा॒योः। जात॑ऽवेदः। बृ॒ह॒तः। सु॒ऽप्र॒नी॒ते॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:15» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:15» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुप्रणीते) उत्कृष्टन्यायकारी (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी (अषाळ्हः) दूसरे से नहीं पराजय के योग्य विद्वान् (वृषभः) बलवान् पुरुष ! आप (विश्वा) सम्पूर्ण (सौभगा) उत्तम ऐश्वर्यवाली (पुरः) नगरियों में (दिदीहि) धर्ममिश्रित कर्मों का प्रकाश कीजिये। हे (जातवेदः) सकलविद्यापूरित विद्वन् पुरुष ! (प्रथमस्य) प्रथमाश्रमब्रह्मचर्य्यरूप (पायोः) रक्षाकारक (बृहतः) श्रेष्ठ (यज्ञस्य) अहिंसा धर्म के (नेता) उत्तम रीति से निर्वाहक हुए और (सञ्जिगीवान्) उत्तम प्रकार जयशाली होइये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषो ! विद्या और विनय से सम्पूर्ण प्रजाओं को प्रसन्न तथा ब्रह्मचर्य्य आदि आश्रमों के निर्वाह से उनमें विद्या उत्तम शिक्षा श्रेष्ठता अतिकाल जीवन आदि बढ़ाय के ऐश्वर्य्यों का आधिक्य कीजिये ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सुप्रणीतेऽग्नेऽषाळ्हो विद्वन् वृषभस्त्वं विश्वाः सौभगा पुरो दिदीहि। हे जातवेदो विद्वन् ! प्रथमस्य पायोर्बृहतो यज्ञस्य नेता सञ्जिगीवान् भव ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अषाळ्हः) असहमानः (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (वृषभः) बलिष्ठः (दिदीहि) धर्म्याणि कर्माणि प्रकाशय (पुरः) नगरीः (विश्वाः) समग्रा (सौभगा) सुभगानामैश्वर्याणां सम्बन्धिनीः। अत्र सुपामिति विभक्तेराकारादेशः। (सञ्जिगीवान्) सम्यग् विजेता सन् (यज्ञस्य) विद्वत्सत्कारादेः (नेता) प्रापकः (प्रथमस्य) आदिमाश्रमब्रह्मचर्य्यस्य (पायोः) रक्षकस्य (जातवेद) जातविद्यः (बृहतः) महतः (सुप्रणीते) शोभना प्रकृष्टा नीतिर्न्यायो यस्य तत्सम्बुद्धौ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषा विद्याविनयाभ्यां सर्वाः प्रजा आनन्द्य ब्रह्मचर्य्याद्याश्रमानुष्ठानेन प्रजासु विद्यासुशिक्षासभ्यतादीर्घायूंषि वर्धयित्वैश्वर्य्याण्युन्नयन्तु ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषांनो! विद्या व विनयाने संपूर्ण प्रजेला प्रसन्न करावे. ब्रह्मचर्य इत्यादीने विद्या, उत्तम शिक्षण, श्रेष्ठता, दीर्घायु इत्यादी वाढवून ऐश्वर्याची वाढ करावी. ॥ ४ ॥